मनोविकारों से मुक्ति का नाम ही मोक्ष है जीवात्मा बूँद है और परमात्मा सागर है

मनोविकारों से मुक्ति का नाम ही मोक्ष है जीवात्मा बूँद है और परमात्मा सागर है
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मनोविकारों से मुक्ति का नाम ही मोक्ष है जीवात्मा बूँद है और परमात्मा सागर है

बूँद का सागर बनना ही बूँद के जीवन का एक मात्र लक्ष्य है ! बूँद (जीवात्मा ) जब तक अपने स्वतंत्र अस्तित्व को बनाये रखना अपना लक्ष्य समझती है तब तक उसकी सागर (परमात्मा ) में विलीन होने की कामना उत्पन्न नहीं हो सकती है ! बूँद में इतनी सामर्थ्य नहीं की वह अपने बल पर सागर में विलीन हो जाए क्योंकि जब तक उसमे जीव (यानि इच्छाए एवं महत्त्वाकांक्षाएं ) है वह सागर में विलीन नहीं हो सकती है ! सागर में विलीन होने के लिए उसे अपनी कामनाओं को समाप्त कर सागर में विलीन होने की प्रबल इच्छा को उत्पन्न करना होगा !
जीवन में इच्छाओं एवं महत्वाकांक्षाओं को सही समय पर ही समाप्त करना चाहिए , उससे पहले नहीं !   वानप्रस्थ  एवं सन्यास आश्रम के समय तक  मानव अपने समस्त  कर्तव्यों का पालन एवं अन्य  कार्य पूर्ण कर चुका  होता है अतः इन आश्रमों के प्रवेश के बाद अपनी इच्छाओं  का दमन कर मोक्ष की ओर  प्रस्थान प्रारम्भ करे !  
वेदों नै जीवन के चार लक्ष्य निर्धारित किये है जिन्हें चार पुरूषार्थ कहा गया है --- 
१. धर्म --- अपने कर्तव्यों (यम नियम में लिपिबद्ध मूलभूत सिध्दांतों का पालन करते हुए, क्रोध आदि तामसिक विचारों से मुक्त होना !
२. अर्थ --- आवश्यकता के अनुसार नेक कमाई करके , लोभ से मुक्त होना !
३. काम --- कर्तव्य पालन में आवश्यकता के अनुसार सात्विक कामनाओं अथवा महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति करते हुए , कामनाओं से मुक्त होना !
४. -मोक्ष ---अहंकार ( काम ,क्रोध,मद,लोभ मोह ,ईर्ष्या एवं द्वेष ) से मुक्ति की प्राप्ति ही मोक्ष है ! 

वेदों में ये चार पुरुषार्थ कहे है जो मानव जीवन के लक्ष्य के रूप में निर्धारित किये गए है ! इन पुरुषार्थों के पश्चात ही प्रभु के दर्शन संभव है ! प्रभु दर्शन ही उस पवित्र कामना को उत्पन्न करती है जिससे एक बूँद ( जीवात्मा ) सागर ( परमात्मा ) में विलीन होती है !

विशेष --- सनातन धर्म में "तुलसी " को " मोक्ष दायिनी " कहा है ! सात्विक आहार एवं तुलसी का सेवन हमारे अंदर  मोक्ष की कामना उत्पन्न करता है ! आयुर्वेद में दिए गए आहार से सम्बंधित निर्देशों, गोमाता के दूध के सेवन एवं ऋषियों के बताये मार्ग ( यम एवं नियमों का पालन ) से ही अहंकार को समाप्त किया जा सकता है एवं पुरुषार्थ को जीवन में लाया जा सकता है अतः स्वाध्याय में अपनी रूचि पैदा करें और अध्यात्म को निमंत्रण दे  और उचित  समय पर " मोक्ष की कामना "  को उत्पन्न करे !

"ए मानव 

एक माटी का दिया सारी रात अंधियारे से लड़ता है,
तू तो प्रभु का  बनाया हुआ " दिया" है, किस बात से डरता है.......