क्रोध करके वो सब मत गंवाइए जो आपने शांत रहकर कमाया है वाणी से ही खुशी वाणी से ही ग़म,वाणी ही पीड़ा और वाणी ही मरहम।

क्रोध करके वो सब मत गंवाइए जो आपने शांत रहकर कमाया है वाणी से ही खुशी वाणी से ही ग़म,वाणी ही पीड़ा और वाणी ही मरहम।
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क्रोध करके वो सब मत गंवाइए जो आपने शांत रहकर कमाया है वाणी से ही खुशी वाणी से ही ग़म,वाणी ही पीड़ा और वाणी ही मरहम।
क्रोध करके वो सब मत गंवाइए जो आपने शांत रहकर कमाया है वाणी से ही खुशी वाणी से ही ग़म,वाणी ही पीड़ा और वाणी ही मरहम।कहा गया है शब्द संभाल कर बोलिए।शब्द के हांथ न पांव एक शब्द औषधि करे एक"शब्द"करे घाव जो इंसान अपनी निंदा सुनकर भी शांत रहता है वह सभी के मन पर विजय प्राप्त कर लेता है।हर जिद हमें खुशी नहीं देती इसलिए कभी-कभी मन को मना लेना ही अच्छा होता है।प्रार्थना इलाज नहीं करती लेकिन कष्ट और दुःख के दिनों में लड़ने की और लड़ते रहने की शक्ति जरुर प्रदान करती है।जीवन  की गर्मी को सहन कीजिए क्योंकि अक्सर वे पौधे मुरझा जाते हैं जिनकी परवरिश छाया में होती है।बुद्धिमत्ता और मूर्खता मे सिर्फ एक ही फर्क है बुद्धि मत्ता की एक सीमा होती है और मूर्खता की कोई सीमा नही होती है।बढ़ती आयु की अपेक्षा बढ़ती अपेक्षा एं हमें अधिक थकाती हैं सुख खरीद लेना हमारे वश में नहीं है परंतु सुख की अनु भूति करना और सुख से जीना हमारे हाथ में अवश्य है।आहार में सत्व व्यवहार में तत्व और बोल चाल में ममत्व रहेगा, तभी मनुष्य जीवन का महत्व है।