कर्ता भाव से मुक्ति प्रदान करता है सहज योग

कर्ता भाव से मुक्ति प्रदान करता है सहज योग
 

मानव जीवन कर्म आधारित है कर्म के बगैर जीवन जीना असंभव है। निष्काम भाव हमें लाचार और दूसरों पर बोझ बना देता है अत: कर्म सफल जीवन की जरूरत है। 
जब हमारे द्वारा किये गये कार्यो पर दूसरे लोग गर्व करते हैं, तब भी हमें अपने कार्य को लेकर गर्व महसूस ना हो तो इसका अर्थ है कि हममें कर्ता भाव  बिलकुल नहीं है । यदि हम स्वयं के कार्य पर गर्व करते हैं तो वह गर्व सहज तो है पर कई बार  यह भाव अभिमान बन जाता है, और हमें पता भी नहीं चलता। गर्व सकारात्मक अभिव्यक्ति है प्रशंसा की।  लेकिन जब हमें अपने कार्य का आभास होने  लगता और हममें मैंने यह क्रिया का भाव आता है, तब यह अभिमान बन जाता है जो एक नकारात्मक वृति है। अभिमान में अहंकार की छाया रहती है। ‘मैं’ इस अभिमान का आधार है। 
    सहज योग में सहज कार्य करने वाले साधक में जब कर्ता भाव आता है तो श्री माताजी सहज योग से निकल जाने की सलाह देती हैं, क्योंकि यह भाव हमारे उत्थान में बहुत बड़ी बाधा है।  दरअसल सहज योग में ढ़ेरों कार्य होते हैं,  जब सहज योगी अपने द्वारा किये गये कार्यों को लेकर अभिमान महसूस करता है, तब यह सहज कार्य में मशहूर होने के प्रयास सम हो जाती है।
निष्काम भाव से किया गया कर्म ही ईश्वर को स्वीकार होता है।   निष्काम भाव हममें स्थापित हो इसके लिए सहज योग माध्यम में बहुत सरल उपाय है जिससे हम ईड़ा (बांई ओर) और पिंगला(दाहिनी ओर) दोनों नाड़ियों को संतुलित करते हैं जिससे हमारे अंदर अंहकार और प्रति अहंकार की भावना पूरी तरह से समाप्त हो जाती है। हमारे अंदर यह ज्ञान स्थापित होता है कि हमें कार्य करने की शुद्ध इच्छा ईश्वर के आशीर्वाद से ही मिलती और उस कार्य को पूर्ण करने ‌का सामर्थ्य भी ईश्वर से ही प्राप्त होता है।   हम इस  सच्चाई से भिज्ञ होते हैं कि करता और करविता ईश्वर है और हम सिर्फ और सिर्फ ईश्वर के माध्यम हैं।  ईश्वर का माध्यम बनने की संतुष्टि हमें बहुत अधिक शांति प्रदान करती है।   
चलिए हम सभी सहज योग से जुड़ते हैं और सुंदर ध्यान की तकनीक सीख ईश्वर का माध्यम बनते हैं।  सहज योग ध्यान केंद्र सदैव सभी नये साधकों का स्वागत करता है। 
 सहज योग के बारे में जानने हेतु हमारा टोल फ्री नंबर है 18002700800 पर कॉल कर सकते हैं या वेबसाइट www.sahajayoga.org.in पर देख सकते हैं।
सहज योग पूर्णतया निशुल्क है.