'चाइल्ड पोर्नोग्राफी': नहीं तनिक भी माफ़ी
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी के खिलाफ कानूनों को मज़बूत करते हुए एक ऐतिहासिक निर्णय दिया है। इस निर्णय के अनुसार ऐसी आपतिजनक सामग्री देखना, रखना या रिपोर्ट न करना यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम के तहत दंडनीय है, भले ही सामग्री शेयर न की गई हो। यह निर्णय बाल शोषण को संबोधित करने और बच्चों के अधिकारों के संरक्षण में व्यक्तियों की जवाबदेही को व्यापक बनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम को दर्शाता है। सुप्रीम कोर्ट ने संसद को सुझाव दिया कि वह यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम में संशोधन करके 'चाइल्ड पोर्नोग्राफी' शब्द के स्थान पर 'बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री' का प्रयोग करे। बाल शोषण और शोषण की भयावह वास्तविकताओं से जूझ रहे समाज में, यह फैसला न केवल मद्रास उच्च न्यायालय के विवादास्पद फैसले को पलटता है, बल्कि संभावित अपराधियों के लिए एक मज़बूत निवारक के रूप में भी काम करता है। बाल यौन शोषण एक व्यापक मुद्दा है जिसे शून्य सहनशीलता के साथ निपटाया जाना चाहिए। यह निर्णय ऐसी सामग्री के मात्र कब्जे को बाल शोषण की बड़ी समस्या के हिस्से के रूप में मान्यता देता है। बाल पोर्नोग्राफ़ी सिर्फ़ एक अलग, निजी अपराध नहीं है, बल्कि दुर्व्यवहार के एक वैश्विक नेटवर्क में योगदान देता है, जहाँ पीड़ितों - अक्सर कमज़ोर बच्चों - का शोषणकारी सामग्रियों के संचलन और उपभोग के माध्यम से बार-बार उल्लंघन किया जाता है।
उच्चतम न्यायालय के निर्णय ने धारा 15 का विस्तार किया है, जो अब चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी को देखने या रखने पर भी सजा का प्रावधान करता है। पूर्व में यह केवल चाइल्ड पोर्नोग्राफी शेयर करने पर दंड का प्रावधान था। वर्ष 2019 के संशोधन में केवल चाइल्ड पोर्नोग्राफी को प्रसारित या प्रदर्शित करने के इरादे से संग्रहीत करने पर दंड की शुरुआत की गई। न्यायालय ने रचनात्मक आधिपत्य को शामिल करने के लिए आधिपत्य की परिभाषा को व्यापक बनाया, जिसमें व्यक्तियों को ऐसी सामग्री को डाउनलोड किए बिना केवल देखने के लिए भी उत्तरदायी ठहराया गया। कोई व्यक्ति बिना स्टोर किए ऑनलाइन चाइल्ड पोर्नोग्राफिक वीडियो देखता है, तो भी उसे अपराध के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि धारा 15 में छोटे अपराध भी शामिल हैं, जिसमें चाइल्ड पोर्नोग्राफी को संग्रहीत करने या देखने जैसी गतिविधियों को बड़े अपराध करने की प्रारंभिक अवस्था के रूप में माना जाता है। पोर्नोग्राफी देखने की सूचना न देना भी अब दंडनीय अपराध माना जाता है। सर्वोच्च न्यायालय ने भारत के कानूनों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाते हुए ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ का नाम बदलकर बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री करने का सुझाव दिया।
इस निर्णय में यह अनिवार्य किया गया है, कि व्यक्तियों को चाइल्ड पोर्नोग्राफी के किसी भी मामले की रिपोर्ट करनी होगी, जिससे जवाबदेही केवल उन लोगों तक ही सीमित नहीं रह जाएगी जो सामग्री को शेयर या संग्रहीत करते हैं। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी को ऑनलाइन देखना भी अपराध है, जिससे बाल शोषण के खिलाफ डिजिटल सुरक्षा उपायों को मजबूती मिली है। इस निर्णय में कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा (इरादे) की गहन जाँच करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रत्येक मामले की गंभीरता की पूरी तरह से जाँच की गई है। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले जैसे न्यायिक हस्तक्षेप जवाबदेही को बढ़ाते हैं, तथा यह सुनिश्चित करते हैं कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी के निष्क्रिय उपभोग को भी दंडित किया जाए। बाल संरक्षण से संबंधित कानूनी परिभाषाओं को मानकीकृत करने में न्यायालय महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जैसे कि ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी’ में बदलाव की सिफारिश करना । यह परिवर्तन सुनिश्चित करता है, कि कानून, बाल यौन शोषण की गंभीरता को प्रतिबिंबित करता है। चाइल्ड पोर्नोग्राफी की रिपोर्टिंग को अनिवार्य बनाकर, न्यायिक हस्तक्षेप बच्चों को दुर्व्यवहार से बचाने की समाज की जिम्मेदारी को मजबूत करता है।न्यायिक हस्तक्षेप ,भारत के कानूनी ढाँचे को अंतरराष्ट्रीय मान वली में बदलाव की सिफारिशें वैश्विक बाल संरक्षण मानदंडों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।
बाल यौन शोषण से निपटने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है-जिसमें न केवल सख्त कानूनी प्रावधान शामिल हों बल्कि सामाजिक जागरूकता और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग भी शामिल हो। जैसे-जैसे तकनीक आगे बढ़ती है और इंटरनेट अधिक व्यापक होता जाता है, बाल शोषण सामग्री वितरित करने के रास्ते बढ़ते जाते हैं। इसलिए, भारत की कानूनी प्रणाली को ऐसे अपराधों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए इन विकासों के साथ तालमेल रखना चाहिए। न्यायिक निर्णय बच्चों की सुरक्षा में सामाजिक भूमिका पर जोर देते हैं, तथा यह सुनिश्चित करते हैं कि समाज को ऐसे कृत्यों पर कार्रवाई करने में विफल रहने के लिए जवाबदेह ठहराए जाएँ। भविष्य के बाल संरक्षण कानूनों के लिए इस तरह के न्यायिक मध्यक्षेप महत्त्वपूर्ण मिसाल कायम करते हैं, जिससे भविष्य में बच्चों को शोषण से बचाने के लिए कानून बनाने का मार्ग प्रशस्त होता है। जवाबदेही के दायरे को व्यापक बनाकर, कानूनी शब्दावली को फिर से परिभाषित करके, और सख्त रिपोर्टिंग दायित्वों को अनिवार्य करके, यह निर्णय बच्चों की सुरक्षा में समाज की भूमिका को मजबूत करता है। इस तरह के न्यायिक मध्यक्षेप बाल अधिकारों को मजबूत करने और सुभेद्य व्यक्तियों के लिए एक सुरक्षित, अधिक जिम्मेदार समाज सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण हैं।
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- डॉo सत्यवान सौरभ,
कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,
333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी,
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