लखनऊ
ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय में एनवायरनमेंट एंड सोसाइटी (ICES-2025) की 7वीं अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण बड़े शहरों में पर्यावरणीय चुनौतियां तेजी से बढ़ी हैं। उन्होंने कहा कि औद्योगिक क्रांति ने पिछले 200 वर्षों में पर्यावरण को भारी क्षति पहुंचाई है, इसलिए अब छोटे-छोटे प्रयासों से बड़े बदलाव लाने की जरूरत है।
मंत्री ने बताया कि डीजल बसें प्रदूषण का मुख्य कारण हैं, इसलिए विभाग ने इलेक्ट्रिक बसों की संख्या बढ़ाने का निर्णय लिया है। पहले 15 शहरों में ई-बसेें चलती थीं, अब यह संख्या बढ़कर 43 हो गई है। उन्होंने घोषणा की कि प्रदेश के सभी जिलों में जल्द ही इलेक्ट्रिक बसों का संचालन शुरू कर दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि लखनऊ की वायु गुणवत्ता में सुधार का बड़ा कारण इलेक्ट्रिक बसों की बढ़ती संख्या है।
कुलपति प्रो. अजय तनेजा ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण पर वैश्विक सहमति बनना समय की जरूरत है। उन्होंने देश-दुनिया से आए विशेषज्ञों का स्वागत करते हुए कहा कि टिकाऊ भविष्य के लिए स्थानीय और वैश्विक स्तर पर सामूहिक प्रयास जरूरी हैं। लोकसेवा आयोग के सदस्य ए.के. वर्मा ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिए ग्लोबल सोच, राष्ट्रीय नीतियां, स्थानीय कार्य और व्यक्तिगत जागरुकता—चारों स्तरों पर कार्रवाई जरूरी है।
ग्लोकल एनवायरनमेंट एंड एसोसिएशन के अध्यक्ष एम.डी. गुप्ता ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण मानवता के अस्तित्व से जुड़ा मुद्दा है। कार्यक्रम में संस्था के संस्थापक रामकुमार वर्मा की स्मृति में लाइफ टाइम एचीवमेंट अवॉर्ड की शुरुआत की गई, जो इस वर्ष डॉ. क्षेत्रपाल गंगवार को दिया गया। समारोह में परिवहन मंत्री को अमेरिकन यूनिवर्सिटी की ओर से मानद उपाधि भी प्रदान की गई।
सम्मेलन का आयोजन भाषा विश्वविद्यालय, जूलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया, राष्ट्रीय सांस्कृतिक संपदा संरक्षण प्रयोगशाला, उत्तर प्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड, अमेरिकन यूनिवर्सिटी, ईसीआरडी परिषद और जेसा के संयुक्त तत्वावधान में हुआ। संयोजन डॉ. नलिनी मिश्रा और डॉ. राजकुमार सिंह ने किया।
पौधे को मिलता है उर्वरक का सिर्फ 30% हिस्सा
अमेरिका की नॉर्थ कैरोलाइना स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रो. विनय पी. अनेजा ने कहा कि कृषि में उपयोग होने वाले उर्वरक का केवल 30% हिस्सा ही पौधे को मिलता है, जबकि 70% बर्बाद होकर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है। उन्होंने बताया कि नाइट्रोजन का अत्यधिक दोहन गंभीर खतरा बन चुका है। अमोनिया-आधारित उर्वरकों के अत्यधिक प्रयोग से मिट्टी, जल और ओजोन परत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन, शहरीकरण और बढ़ती आबादी के बीच नाइट्रोजन संतुलन बनाए रखने के लिए कठोर कदम उठाने होंगे।
