कलकत्ता
बाबरी मस्जिद की नींव डालने का ख्वाब देखना हुमायूं कबीर को भारी पड़ा. ममता को लगा कि इससे हिन्दू एकजुट हो जाएंगे और उनका सिंहासन डोल जाएगा. आनन फानन में उन्होंने हुमायूं कबीर को ही पार्टी से सस्पेंड कर दिया. लेकिन ममता के इस एक्शन ने पश्चिम बंगाल का सियासी समीकरण उलझा दिया है. ममता बनर्जी के लिए यह स्थिति ‘आगे कुआं, पीछे खाई’ जैसी हो गई है. एक तरफ भाजपा का बढ़ता हिंदुत्व कार्ड है, तो दूसरी तरफ उनकी अपनी पार्टी का कोर वोटर मुस्लिम समुदाय, जो अब हुमायूं कबीर की बर्खास्तगी को एक ‘विश्वासघात’ की तरह देख सकता है. क्या आगामी विधानसभा चुनावों में ममता का यह दांव उल्टा तो नहीं पड़ेगा?
हुमायूं कबीर कोई साधारण विधायक नहीं हैं. मुर्शिदाबाद की राजनीति में उनकी हैसियत एक मास लीडर की है. उनका करियर कांग्रेस से शुरू हुआ, वे मंत्री बने, फिर टीएमसी में आए, बीच में 2019 में भाजपा में गए और फिर टीएमसी में लौट आए. इतनी बार पाला बदलने के बावजूद, उनकी निजी लोकप्रियता खासकर भारतपुर और रेजीनगर इलाके में कभी कम नहीं हुई.
अगली बार CM नहीं बन पाएंगी ममता
पश्चिम बंगाल में बाबरी जैसी मस्जिद बनाने का ऐलान कर चुके विधायक हुमायूं कबीर के निशाने पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हैं। उन्होंने दावा किया है कि अगले विधानसभा चुनाव के बाद बनर्जी सीएम नहीं बन पाएंगी। मस्जिद की नींव रखने के ऐलान के बाद राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने उन्हें निलंबित कर दिया था। अब कबीर ने खुद की पार्टी बनाने के संकेत दिए हैं।
गुरुवार को पत्रकारों से बातचीत में कबीर ने कहा, ‘मुख्यमंत्री को पूर्व मुख्यमंत्री बनना है। 2026 में मुख्यमंत्री फिर मुख्यमंत्री नहीं रहेंगी। वह शपथ नहीं लेंगी और पूर्व मुख्यमंत्री कहलाएंगी।’ उन्होंने शुक्रवार को टीएमसी से इस्तीफा देने की बात कही है। कबीर ने दावा किया था कि वह 6 दिसंबर को बाबरी से मिलती जुलती मस्जिद की नींव रखेंगे। बंगाल में साल 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं।
नई पार्टी बनाने की तैयारी
कबीर ने कहा था, ‘मैं कल टीएमसी से इस्तीफा दे दूंगा। अगर जरूरत पड़ी तो मैं 22 दिसंबर को नई पार्टी की घोषणा करूंगा।’ उन्होंने पार्टी के जिला अध्यक्ष के साथ बैठक को लेकर कहा, ‘मैं यहां जिला अध्यक्ष के साथ मीटिंग के लिए आया हूं और प्रतिक्रिया बाद में दूंगा। लेकिन मुझे पार्टी से निलंबित किया है, विधायक पद से नहीं। पहले मीटिंग होने दीजिए।’
बाबरी जैसी मस्जिद बनाने का ऐलान
विधायक कबीर ने पहले ऐलान किया था, ‘हम 6 दिसंबर को मुर्शिदाबाद जिले के बेलदांगा में 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद की नींव रखेंगे।’ इससे पहले उन्होंने कहा था, ‘इसे पूरा होने में 3 साल का समय लगेगा। उस कार्यक्रम में कई मुस्लिम नेता शामिल होंगे।’
रैली में थे और पार्टी ने निलंबित कर दिया
निलंबन की खबर तब सामने आई जब कबीर बहरामपुर में मुख्यमंत्री की एसआईआर विरोधी रैली के आयोजन स्थल पर बैठे थे, जहां तृणमूल ने उन्हें पहले आमंत्रित किया था। कबीर ने इसे ‘जानबूझकर किया गया अपमान’ बताया और कहा कि उनके खिलाफ ‘साजिश’ रची गई है। उन्होंने कहा, ‘मुझे कोई पत्र नहीं मिला है। लेकिन मैं शुक्रवार या सोमवार को विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दूंगा।’
कबीर ने कहा कि उनका नया संगठन अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में कुल 294 में से 135 सीट पर उम्मीदवार उतारेगा। सत्तारूढ़ पार्टी में लौटने से पहले कभी कांग्रेस, कभी तृणमूल और कभी भाजपा में रहे कबीर ने कहा कि बेलडांगा में छह दिसंबर का शिलान्यास कार्यक्रम रद्द नहीं किया जाएगा।
उन्होंने चेतावनी के लहजे में कहा, ‘(शिलान्यास कार्यक्रम में) लाखों लोग शामिल होंगे। अगर प्रशासन हमें रोकने की कोशिश करेगा, तो एनएच-12 जाम किया जा सकता है।’ उन्होंने कहा कि उन्हें चुप कराने के लिए उनकी हत्या भी की जा सकती है। कबीर ने कहा कि अगर उन्हें रोका गया, तो वह धरने पर बैठेंगे और ‘गिरफ्तारी देंगे’। उन्होंने कहा कि उन्हें ‘न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है।’ अधिकारियों ने कहा कि कार्यक्रम के लिए कोई अनुमति नहीं दी गई है।
ममता बनर्जी हुईं नाराज?
एनडीटीवी की रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि विधायक कबीर के फैसले से सीएम बनर्जी नाराज हैं। साथ ही उन्होंने बताया कि सीएम और उनकी पार्टी इस फैसले के साथ नहीं हैं और यह संदेश विधायक को पहुंचा दिया गया है। एक दिन पहले भी टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी भी इस फैसले से दूरी बनाते हुए नजर आए थे।
मुस्लिमों में उनकी पकड़
हुमायूं कबीर की छवि एक ऐसे नेता की है जो समुदाय के मुद्दों पर अपनी ही सरकार से भिड़ने को तैयार रहता है. जब उन्होंने मुर्शिदाबाद में 6 दिसंबर 2025 को ‘बाबरी मस्जिद’ की आधारशिला रखने की बात कही, तो यह महज एक बयान नहीं था. उन्होंने साफ कहा, 25 बीघा जमीन पर इस्लामिक अस्पताल, रेस्ट हाउस, होटल-कम-रेस्टोरेंट, हेलीपैड, पार्क और मेडिकल कॉलेज बनेगा… हुमायूं कबीर को कौन रोक सकता है? मैं चुनौती देता हूं.
उनका यह ‘रॉबिनहुड’ वाला अंदाज उन्हें मुस्लिम युवाओं और ग्रामीण वोटरों के बीच बेहद लोकप्रिय बनाता है. उनके समर्थकों को लगता है कि ममता दीदी दिल्ली के डर से या हिंदू वोटों के लिए मुस्लिम मुद्दों को दबा रही हैं, जबकि हुमायूं कबीर उनकी आवाज उठा रहे हैं.
बाबरी मस्जिद का दांव और ममता की मजबूरी
ममता बनर्जी खुद को सेक्यूलरिज्म की सबसे बड़ी पैरोकार मानती हैं. लेकिन हुमायूं कबीर का दांव उनके लिए गले की हड्डी बन गया. अगर ममता बनर्जी हुमायूं कबीर को बाबरी मस्जिद या उसके नाम पर कोई स्मारक बनाने देतीं, तो भाजपा इसे पूरे बंगाल और देश भर में भुना लेती. भाजपा इसे ‘तुष्टिकरण की पराकाष्ठा’ और ‘हिंदुओं का अपमान’ बताकर ध्रुवीकरण करती. यही वजह है कि ममता के सिपहसालार फिरहाद हकीम ने तुरंत प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कबीर को सस्पेंड किया. हकीम ने तर्क दिया, हम धर्म के नाम पर भेद करने वाली राजनीति नहीं करते. हुमायूं कबीर भाजपा की मदद कर रहे हैं और बंगाल में आग लगाने की कोशिश कर रहे हैं. ममता बनर्जी ने भी अपनी रैली में बिना नाम लिए कहा, हम सांप्रदायिक राजनीति के खिलाफ हैं, मुर्शिदाबाद के लोग दंगा नहीं चाहते.
