नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को विशेष सघन पुनरीक्षण (SIR) कार्य में लगे बूथ स्तर के अधिकारियों (BLOs) को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने चेतावनी दी कि BLOs को धमकाने या उनके काम में बाधा डालने के किसी भी उदाहरण को वह गंभीरता से लेगा। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी गैर-सरकारी संगठन (NGO) सनातनी संसद की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता वी. गिरी के उस आरोप के बाद आई, जिसमें उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में मतदाता गणना के काम के दौरान BLOs को धमकाया जा रहा है।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की बेंच ने इस मुद्दे को अखिल भारतीय आयाम देते हुए कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं। पीठ ने कहा, “यह केवल पश्चिम बंगाल के बारे में नहीं है, बल्कि सभी राज्यों के लिए है। चुनाव आयोग (EC) के काम में असहयोग एक गंभीर मुद्दा है। BLOs को पूरी सुरक्षा मिलनी चाहिए।” कोर्ट ने कहा, “अगर चुनाव आयोग को BLOs की सुरक्षा और संरक्षा के संबंध में राज्य के अधिकारियों या पुलिस से असहयोग की कोई शिकायत है, तो उसे सुप्रीम कोर्ट से संपर्क करना चाहिए। हम उचित आदेश पारित करेंगे।”
CJI की अगुवाई वाली बेंच ने कहा, “हम BLOs की रक्षा के लिए कड़ी कार्रवाई करेंगे। उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए, अन्यथा अराजकता होगी।” कोर्ट ने केंद्र और चुनाव आयोग से जवाब मांगते हुए चुनाव आयोग को सभी राज्यों में स्थिति का आकलन करने और जरूरत पड़ने पर उचित निर्देश के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने को कहा।
अदालत में BLOs पर काम के बोझ और तनाव पर भी चर्चा हुई, जिसका संदर्भ कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी के उस बयान से मिलता है जिसमें उन्होंने BLOs की मौत का आरोप लगाते हुए SIR को बंद करने की मांग की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने 4 दिसंबर के अपने आदेश का उल्लेख किया, जिसमें राज्यों को निर्देश दिया गया था कि जो BLOs तनावग्रस्त हैं या स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं, उन्हें SIR कार्य से हटने की अनुमति दी जाए और पर्याप्त प्रतिस्थापन प्रदान किया जाए। चुनाव आयोग ने कहा कि एक BLO को 37 दिनों में अधिकतम 1,200 मतदाताओं की गणना करनी होती है, यानी लगभग 35 मतदाता प्रति दिन। आयोग ने सवाल किया, “क्या यह बहुत अधिक काम है?”
जस्टिस बागची ने कहा, “यह डेस्क जॉब नहीं है जहां 35 का कोटा आसानी से पूरा हो जाता है। एक BLO को घर-घर जाकर गणना प्रपत्रों का सत्यापन करना होता है और फिर उसे अपलोड करना होता है। इसमें तनाव और शारीरिक थकान हो सकती है। हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि जमीनी स्तर पर SIR बिना किसी रुकावट के हो।”
जस्टिस बागची ने पश्चिम बंगाल में BLOs के खिलाफ धमकी के आरोपों को साबित करने के लिए सनातनी संसद द्वारा प्रस्तुत सामग्री पर भी सवाल उठाया। जस्टिस बागची ने पूछा, “एकमात्र FIR के अलावा, आरोपों की पुष्टि के लिए कोई अन्य विश्वसनीय सबूत नहीं है। क्या एक अकेली घटना के आधार पर यह कहा जा सकता है कि यह केवल पश्चिम बंगाल में हो रहा है, अन्य राज्यों में नहीं? क्या यह एक तरफा बयानबाजी नहीं है? क्या सभी राज्यों की पुलिस को चुनाव आयोग के अधीन कर दिया जाना चाहिए?”
राज्य सरकारों का विरोध: EC के वकील ने कहा कि पश्चिम बंगाल के साथ-साथ तमिलनाडु और केरल में भी समस्याएँ आ रही हैं, क्योंकि वहाँ की राज्य सरकारों ने SIR के प्रति अपना विरोध सार्वजनिक कर दिया है।
यह मामला दिखाता है कि कैसे मतदाता सूची पुनरीक्षण का कार्य न केवल तकनीकी और प्रशासनिक है, बल्कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एक गंभीर राजनीतिक और कानूनी विवाद का विषय बन गया है।
